सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत लोक प्राधिकरणों के लिए दिशा-निर्देश | Guidelines for the public authorities under RTI Act 2005

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Guidelines for the public authorities under RTI Act 2005 | सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत लोक प्राधिकरणों के लिए दिशा-निर्देश एवं नियम

कार्मिक लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय, भारत सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के कार्यालय ज्ञापन दिनांक 25 अप्रैल, 2008 के द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत लोक प्राधिकरणों के लिए दिशा-निर्देश जारी किये गए है। लोक प्राधिकरण उन सूचनाओं का भण्डार है जिनको प्राप्त करना सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत नागरिकों का अधिकार है। अधिनियम के अनुसार लोक प्राधिकरणों का यह दायित्व है कि वे अपने पास उपलब्ध सूचनाओं को जनता की पहुँच में लाएँ। सम्बन्धित विभाग ने लोक प्राधिकरणों के लिए एक मार्गदर्शिका तैयार की है जो अनुबंध के रूप में संलग्न है। यह मार्गदर्शिका उन्हें अपने कर्तव्यों का प्रभावशाली ढंग से निष्पादन करने में सहायता प्रदान करेगी।

लोक प्राधिकरणों के लिए मार्गदर्शिका

लोक प्राधिकरण ऐसी सूचनाओं का भण्डार होते हैं, जिन्हें सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत प्राप्त करना नागरिकों का अधिकार है। अधिनियम के अनुसार “लोक प्राधिकरण” का अर्थ ऐसा प्राधिकरण या निकाय या स्वायत्त सरकारी संस्था है, जो संविधान द्वारा या उसके अधीन बनाया गया हो; या संसद या किसी राज्य विधानमण्डल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा बनाया गया हो; या केन्द्रीय सरकार अथवा किसी राज्य सरकार द्वारा जारी की गई अधिसूचना या किए गए आदेश द्वारा स्थापित या गठित किया गया हो। केन्द्र सरकार या किसी राज्य सरकार के स्वामित्वाधीन, नियंत्रणाधीन या आंतरिक रूप से वित्तपोषित निकाय और केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित गैर-सरकारी संगठन भी लोक प्राधिकरण की परिभाषा में आते हैं। सरकार द्वारा किसी निकाय या गैर-सरकारी संगठन का वित्तपोषण प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष हो सकता है।

2. अधिनियम ने लोक प्राधिकरणों के लिए कुछ महत्वपूर्ण दायित्व निर्धारित किए हैं। लोक प्राधिकरणों के नियंत्रणाधीन सूचनाओं तक नागरिकों की पहुँच को आसान बनाने के उद्देश्य से किसी लोक प्राधिकरण के दायित्व वास्तव में प्राधिकरण के मुखिया के दायित्व हैं। लोक प्राधिकरण के मुखिया के द्वारा यह सुनिश्चित करना अपेक्षित है कि इन दायित्वों का पूरी गम्भीरता से पालन हो। इस दस्तावेज में लोक प्राधिकरण का आशय वास्तव में लोक प्राधिकरण के मुखिया से ही है।

सूचना क्या है

3. सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुसार “सूचना” कोई अमूर्त अवधारणा नहीं है। इसके अनुसार किसी भी इलेक्ट्रॉनिक रूप में धारित अभिलेख, दस्तावेज, ज्ञापन, ई-मेल, मत, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, आदेश, लॉगबुक, संविदा, रिपोर्ट, कागजपत्र, नमूने, माडल, आंकड़ों संबंधी सामग्री सहित कोई भी सामग्री अभिप्रेत है। इसमें किसी निजी निकाय से संबंधित ऐसी सूचना भी शामिल है जिसे लोक प्राधिकरण तत्समय लागू किसी कानून के अंतर्गत प्रात कर सकता है।

अधिनियम के अंतर्गत सूचना का अधिकार

4. किसी नागरिक को किसी लोक प्राधिकरण से ऐसी सूचना माँगने का अधिकार है, जो उस लोक प्राधिकरण के पास उपलब्ध है या उसके नियंत्रण में उपलब्ध है। इस अधिकार में लोक प्राधिकरण के पास या नियंत्रण में उपलब्ध कृति, दस्तावेजों तथा रिकार्डों का निरीक्षण; दस्तावेजों या रिकार्डों के नोट, उद्धरण या प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना; सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना शामिल है।

5. अधिनियम नागरिकों को, संसद-सदस्यों और राज्य विधान मण्डल के सदस्यों के बराबर सूचना का अधिकार प्रदान करता है। अधिनियम के अनुसार ऐसी सूचना, जिसे संसद अथवा राज्य विधानमण्डल को देने से इन्कार नहीं किया जा सकता, उसे किसी व्यक्ति को देने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता।

6. नागरिकों को डिस्केट्स, फ्लॉपी, टेप, वीडियो कैसेट या किसी अन्य इलेक्ट्रॉनिक रूप में अथवा प्रिंट आउट के रूप में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है, बशर्तें कि मांगी गई सूचना कम्प्यूटर में या अन्य किसी युक्ति में पहले से सुरक्षित है, जिससे उसे डिस्केट आदि में स्थानांतरित किया जा सके।

7. आवेदक को सूचना सामान्यत: उसी रूप में प्रदान की जाती है, जिसमें वह मांगता है। तथापि, यदि किसी विशेष स्वरूप में माँगी गई सूचना की आपूर्ति से लोक प्राधिकरण के संसाधनों का अनपेक्षित ढंग से विचलन होता है या इससे रिकॉर्डों के परिरक्षण में कोई हानि की सम्भावना होती है, तो उस रूप में सूचना देने से मना किया जा सकता है।

8. अधिनियम के अंतर्गत सूचना का अधिकार केवल भारत के नागरिकों को प्राप्त है। अधिनियम में निगम, संघ, कम्पनी आदि को, जो वैध हस्तियों/व्यक्तियों की परिभाषा के अंतर्गत तो आते हैं, किन्तु नागरिक की परिभाषा में नहीं आते, को सूचना देने का कोई प्रावधान नहीं है। फिर भी, यदि किसी निगम, संघ, कम्पनी, गैर सरकारी संगठन आदि के किसी ऐसे कर्मचारी या अधिकारी द्वारा प्रार्थनापत्र दिया जाता है, जो भारत का नागरिक है, तो उसे सूचना दी जाएगी, बशर्ते वह अपना नाम इंगित करे। ऐसे मामले में, यह प्रकल्पित होगा कि एक नागरिक द्वारा निगम आदि के पते पर सूचना माँगी गई है।

ये देखें :  आवेदन-पत्रों का स्थानांतरण | Transfer of application under RTI Act 2005

9. अधिनियम के अंतर्गत केवल ऐसी सूचना प्रदान करना अपेक्षित है, जो लोक प्राधिकरण के पास पहले से मौजूद है अथवा उसके नियंत्रण में है। केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना सृजित करना; या सूचना की व्याख्या करना; या आवेदक द्वारा उठाई गई समस्याओं का समाधान करना; या काल्पनिक प्रश्नों का उत्तर देना अपेक्षित नहीं है।

प्रकटीकरण से छूट प्राप्त सूचना

10. इस अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) और धारा 9 में सूचना की ऐसी श्रेणियों का विवरण दिया गया है, जिन्हें प्रकटीकरण से छूट प्राप्त है। फिर भी, धारा 8 की उप-धारा (2) में यह प्रावधान है कि उप-धारा (1) के अन्तर्गत छूट प्राप्त अथवा शासकीय गोपनीय अधिनियम, 1923 के अन्तर्गत छूट प्राप्त सूचना का प्रकटीकरण किया जा सकता है, यदि प्रकटीकरण से संरक्षित हित को होने वाले नुकसान की अपेक्षा वृहत्तर लोक हित सधता हो। इसके अलावा धारा 8 की उप-धारा (3) में यह प्रावधान है कि उप-धारा (1) के खण्ड (क), (ग) और (झ) में उपबन्धित सूचना के सिवाय उस उप-धारा के अन्तर्गत प्रकटीकरण से छूट प्राप्त सूचना सम्बद्ध घटना के घटित होने की तारीख के 20 वर्ष बाद प्रकटीकरण से मुक्त नहीं रहेगी।

11. स्मरणीय है कि अधिनियम की धारा 8 (3) के अनुसार लोक प्राधिकारियों से यह अपेक्षा नहीं की गई है कि वे अभिलेखों को अनन्त काल तक सुरक्षित रखें। लोक प्राधिकरण को प्राधिकरण में लागू अभिलेख धारण अनुसूची के अनुसार ही अभिलेखों को संरक्षित रखना चाहिए। किसी फाइल में सृजित जानकारी फाइल/अभिलेख के नष्ट हो जाने के बाद भी कार्यालय ज्ञापन अथवा पत्र अथवा किसी भी अन्य रूप में मौजूद रह सकती है। अधिनियम के अनुसार यह अपेक्षित है कि धारा 8 की उप धारा (1) के अंतर्गत – प्रकटन से छूट प्राप्त होने के बावजूद भी 20 वर्ष बाद भी इस प्रकार उपलब्ध जानकारी उपलब्ध करा दी जाए। अर्थ यह है कि ऐसी जानकारी जिसे सामान्य रूप से अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) के अंतर्गत प्रकटन से छूट प्राप्त है, जानकारी से संबंधित घटना के घटित होने के 20 वर्ष बाद ऐसी छूट से मुक्त हो जाएगी। तथापि, निम्नलिखित प्रकार की जानकारी के लिए प्रकटन से छूट जारी रहेगी और 20 वर्ष बीत जाने के बाद भी ऐसी जानकारी को किसी नागरिक को देना बाध्यकारी नहीं होगा:-

(i) ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से भारत की संप्रभुता और अखण्डता, राष्ट्र की सुरक्षा, सामरिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हित, विदेश के साथ संबंध प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हो अथवा कोई अपराध भड़कता हो;

(ii) ऐसी जानकारी जिसके प्रकटन से संसद अथवा राज्य के विधानमण्डल की अवहेलना होती हो; अथवा

(iii) अधिनियम की धारा 8 की उप-धारा (1) के खण्ड (झ) के प्रावधान में दी गई शर्तों के अधीन मंत्रिपरिषद्‌, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श सहित मंत्रिमण्डलीय दस्तावेज।

सूचना की समयबद्ध आपूर्ति

12. अधिनियम के अनुसार यह अपेक्षित है कि कुछेक विशेष परिस्थितियों को छोड़कर सूचना के लिए प्राप्त आवेदन पर अनुरोध प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर निर्णय दे दिया जाए। जहाँ मांगी गई सूचना का संबंध व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से हो, तो सूचना अनुरोध प्राप्त होने के 48 घंटे के भीतर मुहैया करा देनी चाहिए। यदि सूचना के अनुरोध पर निर्णय निर्धारित अवधि के अंदर नहीं दिया जाता है, तो यह समझा जाएगा कि अनुरोध को नामंजूर कर दिया गया है। स्मरणीय है कि यदि लोक प्राधिकरण निर्धारित समय-सीमा का अनुपालन करने में असफल रहता है, तो संबंधित आवेदक को सूचना मुफ्त मुहैया कराई जाएगी।

सूचना का अधिकार बनाम अन्य अधिनियम

13. सूचना का अधिकार अधिनियम का अन्य विधियों की तुलना में अधिभावी प्रभाव है। शासकीय गोपनीयता अधिनियम, 1923 और तत्काल प्रभावी किसी अन्य कानून में ऐसे प्रावधान, जो सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से असंगत है, की उपस्थिति की स्थिति में सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होंगे।

रिकार्डों का रख-रखाव और कम्प्यूटरीकरण

14. अधिनियम के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए रिकार्डों का समुचित प्रबन्धन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए लोक प्राधिकरणों को अपने सभी रिकार्ड ठीक तरह से रखने चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके सभी रिकॉर्ड सम्यक्‌ रूप से सूचीपत्रित और अनुक्रमणिकाबद्ध हों, ताकि सूचना के अधिकार को सुकर बनाया जा सके।

15. लोक प्राधिकरणों को कम्प्यूटरीकृत करने योग्य सभी रिकार्डो को कम्प्यूटरीकृत करके रखना चाहिए। इस तरह कम्प्यूटरीकृत किए गए रिकार्डों को विभिन्न प्रणालियों पर नेटवर्क के माध्यम से जोड़ देना चाहिए, ताकि ऐसे रिकार्डों तक पहुँच को सुकर बनाया जा सके।

स्वत: प्रकटन

16. प्रत्येक लोक प्राधिकरण से अपेक्षित है कि वे लोगों को सम्प्रेषण के विभिन्न माध्यमों से अधिक-से-अधिक सूचना मुहैया कराएं, ताकि लोगों को सूचना प्राप्त करने के लिए अधिनियम का कम-से-कम प्रयोग करना पड़े। इंटरनेट सम्प्रेषण के सबसे प्रभावी साधनों में से एक है। अतः लोक प्राधिकरणों को अधिक-से-अधिक सूचना वेबसाइट पर पोस्ट कर देनी चाहिए।

17. अधिनियम की धारा 4 (1) (ख) के अनुसार सभी लोक प्राधिकरणों से यह अपेक्षित है कि वे सूचना की निम्नलिखित 16 श्रेणियों को विशेष रूप से प्रकाशित करें:-
(i) अपने संगठन की विशिष्टियां, कृत्य और कर्तव्य;
(ii) अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की शक्तियां और कर्तव्य;
(iii) विनिश्चय करने की प्रक्रिया में पालन की जाने वाली प्रक्रिया, जिसमें पर्यवेक्षण और उत्तरदायित्व के माध्यम सम्मिलित हैं;

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(iv) अपने कृत्यों के निर्वहन के लिए स्वयं द्वारा स्थापित मापमान;
(v) अपने द्वारा या अपने नियंत्रणाधीन धारित या अपने कर्मचारियों द्वारा अपने कृत्यों के निर्वहन के लिए प्रयोग किए गए नियम, विनियम, अनुदेश, निर्देशिका और अभिलेख;
(vi) ऐसे दस्तावेजों की श्रेणी का विवरण जो उनके द्वारा धारित किए गए हैं अथवा उनके नियंत्रण में है;

(vii) किसी व्यवस्था का विवरण जिसमें उसकी नीति निर्माण अथवा उसके कार्यान्वयन के सम्बन्ध में लोक सदस्यों के साथ परामर्श या उनके द्वारा अभ्यावेदन के लिए विद्यमान हैं,
(viii) बोर्ड, परिषदों, समितियों और अन्य निकायों के विवरण जिसमें दो अथवा दो से अधिक व्यक्ति हों और जिसकी स्थापना इसके भाग के रूप में अथवा इसकी सलाह के प्रयोजन के लिए की गई हो, और यह विवरण कि क्या इन बोर्डों, परिषदों, समितियों तथा अन्य निकायों की बैठक लोगों के लिए खुली है, अथवा ऐसी बैठक के कार्यवृत्त लोगों के लिए सुलभ हैं;
(ix) अपने अधिकारियों और कर्मचारियों की निर्देशिका;

(x) अपने प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी द्वारा विनियमों में यथा उपलब्ध क्षतिपूर्ति की प्रणाली सहित प्राप्त किया गया मासिक पारिश्रमिक;
(xi) सभी योजनाओं, प्रस्तावित परिव्यय और किए गए आहरणों सम्बन्धी रिपोर्ट सामग्री को दर्शाते हुए इसके प्रत्येक अभिकरण को आबंटित बजट;
(xii) आवंटित राशि सहित सब्सिडी कार्यक्रमों के निष्पादन का ढंग और ऐसे कार्यक्रमों के लाभार्थियों का ब्यौरा;
(xiii) अपने द्वारा मंजूर की गई रियायत, अनुज्ञा पत्र या प्राधिकारों के प्राप्तकर्ताओं का विवरण;

(xiv) अपने पास इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध अथवा धारित की गई सूचना के सम्बन्ध में ब्यौरा;
(xv) सूचना प्राप्त करने के लिए नागरिकों को उपलब्ध सुविधाओं के ब्यौरे, जिनमें जनसाधारण के लिए उपलब्ध पुस्तकालय या वाचन-कक्ष के ब्यौरे भी सम्मिलित हों;
(xvi) लोक सूचना अधिकारियों के नाम, पदनाम और अन्य विशिष्टियां;

18. किसी लोक प्राधिकरण के द्वारा प्रकाशन के लिए सरकार सूचना की उक्त सूचना श्रेणियों के  अतिरिक्त अन्य श्रेणी भी निर्धारित कर सकती है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि ऊपर संदर्भित सूचना का प्रकाशन वैकल्पिक नहीं है। यह एक कानूनी आवश्यकता है जिसे पूरा करना प्रत्येक लोक प्राधिकरण के लिए जरूरी है।

19. स्मरणीय है कि उक्त सूचनाओं का एक बार प्रकाशन कर देना पर्याप्त नहीं है। लोक प्राधिकरण को इन सूचनाओं को प्रत्येक वर्ष अद्यतन करते रहना चाहिए। जैसे ही सूचना में कोई परिवर्तन हो इसे अद्यतन कर दिया जाना चाहिए। विशेषकर इंटरनेट पर सूचना हर समय अद्यतन रखी जानी चाहिए।

20. लोक प्राधिकरणों से यह अपेक्षित है कि वे सूचनाओं का व्यापक प्रचार-प्रसार करें। प्रचार-प्रसार इस प्रकार से होना चाहिए कि यह लोगों तक आसानी से पहुँच जाए। ऐसा नोटिस बोर्डो, समाचारपत्रों, लोक उद्धोषणाओं, मीडिया प्रसारण, इंटरनेट अथवा किसी अन्य साधनों के माध्यम से किया जा सकता है। लोक प्राधिकरण को सूचना का प्रचार-प्रसार करते समय लागत प्रभावकारिता, स्थानीय भाषा और सम्प्रेषण के प्रभावी तरीकों का ध्यान रखना चाहिए।

नीतियों और निर्णयों के बारे में तथ्यों का प्रकाशन

21. लोक प्राधिकरण समय-समय पर नीति निर्धारण और निर्णय लेने का कार्य करते रहते हैं। अधिनियम की व्यवस्था के अनुसार महत्वपूर्ण नीति निर्धारण करते समय अथवा लोगों को प्रभावित करने वाले निर्णयों की घोषणा करते समय लोक प्राधिकरण को चाहिए कि वह ऐसी नीतियों और निर्णयों के बारे में आम लोगों के लिए सभी सम्बद्ध तथ्यों का प्रकाशन करें।

निर्णयों के कारण उपलब्ध कराना

22. लोक प्राधिकरणों को समय-समय पर लोगों को प्रभावित करने वाले प्रशासनिक और न्यायिक-कल्प निर्णय लेने होते हैं। सम्बन्धित लोक प्राधिकरण के लिए यह बाध्यकारी है कि वह प्रभावित लोगों को ऐसे निर्णयों के कारण बताए। इसके लिए सम्प्रेषण के समुचित माध्यम का प्रयोग किया जाना चाहिए।

केंद्रीय लोक सूचना अधिकारियों आदि को नामित करना

23. प्रत्येक लोक प्राधिकरण को अपने अधीनस्थ सभी प्रशासनिक एककों तथा कार्यालयों में लोक सूचना अधिकारी नामित करने होते हैं। उन्हें प्रथम अपीलीय प्राधिकारी भी नामित करने चाहिए और उनका विवरण लोक सूचना अधिकारियों के विवरण के साथ ही प्रकाशित कर देना चाहिए। प्रत्येक लोक प्राधिकरण से प्रत्येक उप-प्रभागीय स्तर पर सहायक लोक सूचना अधिकारियों को नामित करना भी अपेक्षित है। सरकार ने यह निर्णय लिया है कि डाक विभाग द्वारा नियुक्त किए गए केन्द्रीय सहायक लोक सूचना अधिकारी (सीएसपीआईओ) भारत सरकार के अंतर्गत सभी लोक प्राधिकरणों के लिए केन्द्रीय सहायक लोक सूचना प्राधिकारी के रूप में कार्य करेंगे।

शुल्क की प्राप्ति

24. यथा संशोधित सूचना का अधिकार (शुल्क एवं लागत का विनियमन) नियमावली, 2005 के अनुसार सूचना के लिए प्रार्थना करने वाला कोई भी व्यक्ति देय शुल्क का भुगतान लोक प्राधिकरण के लेखा अधिकारी को रोकड़ में या डिमाण्ड ड्राफ्ट अथवा बैंकर्स चेक अथवा भारतीय डाक आदेश द्वारा कर सकता है। लोक प्राधिकरण के लिए यह सुनिश्चित करना अपेक्षित है कि शुल्क के भुगतान के उक्त तरीकों में से किसी को भी मना नहीं किया जाए अथवा आवेदनकर्ता को लेखा अधिकारी के अतिरिक्त किसी अन्य अधिकारी के नाम पर आईपीओ इत्यादि आहरित करने के लिए विवश नहीं किया जाए। यदि किसी लोक प्राधिकरण में कोई लेखा अधिकारी नहीं हो तो सूचना के अधिकार अधिनियम अथवा इसके अंतर्गत बनाए गए नियमों के अंतर्गत शुल्क प्राप्त करने के प्रयोजन से किसी अधिकारी को लेखा अधिकारी नामित कर देना चाहिए।

25. अधिनियम में प्रावधान है कि यदि किसी लोक प्राधिकरण से किसी ऐसी सूचना के लिए आवेदन किया जाता है जो किसी अन्य लोक प्राधिकरण के पास उपलब्ध है; अथवा जिसकी विषय-वस्तु किसी अन्य लोक प्राधिकरण के कार्यों से अधिक सम्बद्ध है, तो आवेदन प्राप्त करने वाले लोक प्राधिकरण को आवेदन अथवा उसके संगत भाग को आवेदन की प्राप्ति के पांच दिन के भीतर सम्बद्ध लोक प्राधिकरण को अंतरित कर देना चाहिए। लोक प्राधिकरणों को चाहिए कि वे अपने प्रत्येक अधिकारी को अधिनियम के इस प्रावधान के बारे में संवेदनशील बनाएं ताकि ऐसा न हो कि देरी के लिए आवेदन प्राप्त करने वाले लोक प्राधिकरण को ही जिम्मेवार ठहरा दिया जाए।

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26. किसी अपील पर निर्णय लेते हुए केन्द्रीय सूचना आयोग, संबंधित लोक प्राधिकारी से कुछ ऐसे कदम उठाने की अपेक्षा कर सकता है जो अधिनियम के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक हों। आयोग किसी विशेष फार्म में किसी आवेदक को सूचना उपलब्ध कराने, अभिलेखों के रखरखाव, प्रबंधन और क्षति सम्बन्धित अभिक्रियाओं में आवश्यक बदलाव करने; पदाधिकारियों के प्रशिक्षण के प्रावधान को विस्तार देने; अधिनियम की धारा 4 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अनुपालन में तैयार की गई वार्षिक रिपोर्ट मुहैया कराने का आदेश पास कर सकता है।

27. आयोग को यह शक्ति प्राप्त है कि वह सम्बद्ध लोक प्राधिकरण को शिकायतकर्ता को, उसके द्वारा भोगी गई किसी हानि अथवा अन्य नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए आदेश पारित करे, आयोग को लोक सूचना अधिकारी पर अधिनियम में दी गई शास्ति लगाने की भी शक्ति प्राप्त है। स्मरणीय है कि शास्ति लोक सूचना अधिकारी पर अधिरोपित की जाती है जिसका भुगतान उसे ही करना होता है। तथापि, आयोग के आदेश पर किसी आवेदक को भुगतान की जाने वाली क्षतिपूर्ति का भुगतान लोक प्राधिकरण द्वारा किया जाना होगा।

28. आयोग के निर्णय बाध्यकारी हैं। लोक प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आयोग द्वारा पारित आदेश कार्यान्वित हों। यदि लोक प्राधिकरण के मतानुसार आयोग का कोई आदेश अधिनियम के अनुरूप न हो, तो वह आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल कर सकता है।

केन्द्रीय सूचना आयोग की वार्षिक रिपोर्ट

29. केन्द्रीय सूचना आयोग से, प्रत्येक वर्ष की समाप्ति के पश्चात उस वर्ष के दौरान अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन सम्बन्धी एक रिपोर्ट तैयार करना अपेक्षित है। प्रत्येक मंत्रालय अथवा विभाग से अपेक्षित है कि वह अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले लोक प्राधिकरणों से रिपोर्ट तैयार करने हेतु सूचना एकत्र करे और उसे केन्द्रीय सूचना आयोग को मुहैया कराए। आयोग की रिपोर्ट में, अन्य बातों के साथ-साथ, सम्बद्ध वर्ष के संबंध में निम्नलिखित सूचनाएं समाविष्ट होती हैं:

(क) प्रत्येक लोक प्राधिकरण से किए गए अनुरोधों की संख्या;
(ख) ऐसे निर्णयों की संख्या, जहां आवेदक अनुरोध किए गए दस्तावेजों को प्राप्त करने के हकदार नहीं थे। अधिनियम के प्रावधान जिनके अधीन ये निर्णय किए गए और उन अवसरों की संख्या, जहां ऐसे प्रावधानों का प्रयोग किया गया;
(ग) अधिनियम को लागू करने के संबंध में अधिकारियों के विरुद्ध की गई अनुशासनिक कार्रवाई के ब्यौरे;

(घ) अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक लोक प्राधिकरण द्वारा एकत्र प्रभारों की राशि, और
(ड.) ऐसे तथ्य जो अधिनियम के भाव और अभिप्राय को प्रशासित और कार्यान्वित करने हेतु लोक प्राधिकारियों द्वारा किए गए किसी प्रयास को दर्शाएं।

30. प्रत्येक लोक प्राधिकरण को वर्ष की समाप्ति के तुरंत बाद आवश्यक सामग्री अपने प्रशासनिक मंत्रालय/विभाग को भेज देनी चाहिए ताकि मंत्रालय/विभाग उसे सूचना आयोग को भेज सके और आयोग इसे अपनी रिपोर्ट में शामिल कर सके।

31. यदि केन्द्रीय सूचना आयोग को ऐसा प्रतीत होता है कि किसी लोक प्राधिकरण की कोई प्रक्रिया अधिनियम के प्रावधानों अथवा अभिप्राय के अनुरूप नहीं है, तो वह प्राधिकरण से ऐसे कदम उठाने की अनुशंसा कर सकता है जिससे प्रक्रिया अधिनियम के अनुरूप हो जाए। लोक प्राधिकरण को चाहिए कि वह अपनी अभिक्रिया को अधिनियम के अनुरूप बनाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करे।

कार्यक्रम इत्यादि का विकास

32. प्रत्येक प्राधिकरण से यह आशा की जाती है कि वह जनता, विशेषकर अलाभान्वित जनता की अधिनियम में अपेक्षित अधिकारों का प्रयोग करने से संबंधित समझदारी बढाने के लिए शैक्षणिक कार्यक्रमों का विकास और आयोजन करेगा। उनसे अपनी गतिविधियों के बारे में सटीक सूचना के यथासमय और प्रभावी प्रसार को सुनिश्चित करने की भी अपेक्षा की जाती है। इन आकांक्षाओं को पूरा करने और अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी बनाने के लिए लोक प्राधिकरण के लोक सूचना अधिकारियों और अन्य अधिकारियों का प्रशिक्षण अति आवश्यक है। अत: लोक प्राधिकरणों को चाहिए कि वे अपने लोक सूचना अधिकारी/प्रथम अपीलीय प्राधिकारी तथा अन्य अधिकारियों, जो अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हों के प्रशिक्षण हेतु व्यवस्था करें।

सभी मंत्रालयों/विभागों इत्यादि से अनुरोध है कि वे मार्गदर्शिका की विषयवस्तु को सभी लोक प्राधिकरणों के नोटिस में लाए और सुनिश्चित करें कि अधिनियम का अनुपालन हो। ऊपर दिए गए दिशा-निर्देश राज्य सरकारों के अधीन लोक प्राधिकरणों पर भी आवश्यक संशोधनों के बाद लागू होते हैं। उचित होगा कि राज्य सरकारें भी अपने लोक प्राधिकरणों के लिए ऐसे दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार करे।

सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप नीचे दिए गए लिंक से उक्त नियम की प्रति प्राप्त कर सकते हैं।


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