RTI record keeping | रिकॉर्ड का रख-रखाव और सूचना का प्रकाशन करने सम्बन्धी दिशा-निर्देश
कार्मिक लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय, भारत सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के कार्यालय ज्ञापन दिनांक 27 मार्च, 2008 के द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत रिकॉर्ड का रख-रखाव (RTI record keeping) और सूचना का प्रकाशन करने सम्बन्धी दिशा-निर्देश जारी किये गए है। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 4 में अधिकाधिक सूचना के स्वयं प्रकटीकरण के प्रावधान के माध्यम से लोक प्राधिकारियों के काम-काज में पारदर्शिता की एक व्यावहारिक व्यवस्था निर्धारित की गई है ताकि जनता को सूचना प्राप्त करने के लिए अधिनियम की धारा 6 का सहारा न लेना पड़े। अधिनियम का यह एक ऐसा महत्वपूर्ण भाग है जिसका अनुपालन, इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अनिवार्य है।
अधिनियम की धारा 4 की उपधारा (1) के खंड (क) के अनुसार प्रत्येक लोक प्राधिकारी को अपने सभी रिकॉर्डों को सूचीकृत और अनुक्रमणिका (इन्डेक्स) बना कर रखना बाध्यकर है। इस प्रावधान के अनुसार रिकॉर्ड प्रबंधन, लोक सूचना अधिकारी को अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना मुहैया करवाने में सक्षम बनाने हेतु एक महत्वपूर्ण कदम है। इस खंड में लोक प्राधिकारी से यह अपेक्षित है कि वह अपने रिकॉर्डों को कम्प्यूटरीकृत करे और उन्हें देश भर में नेटवर्क के माध्यम से जोड़ दे। लोक प्राधिकारियों से, इस खंड की अपेक्षाओं को उच्चतम वरियता के आधार पर पूरा करने की आशा की जाती है।
उपर्युक्त उप धारा के खंड (ख) के अनुसार लोक प्राधिकारियों के लिए यह अधिदेशात्मक है कि वे उसमें उल्लिखित सूचनाओं का प्रकाशन, अधिनियम के लागू होने की तारीख से 120 दिनों के भीतर करवाएं। आशा की जाती है कि सभी लोक प्राधिकारियों द्वारा इस अपेक्षा का अनुपालन पहले ही किया जा चुका होगा। यदि ऐसा नहीं किया गया है तो इसका अनुपालन बिना कोई और विलंब किए सुनिश्चित कर लिया जाए।
अधिनियम की धारा 4 की उप धारा (1) के खंड (ग) के अंतर्गत सभी लोक प्राधिकारियों के लिए यह बाध्यकर है कि वे जनता को प्रभावित करने वाली महत्वपूर्ण नीतियां तैयार करते समय और निर्णय घोषित करते समय सभी संगत तथ्यों को प्रकाशित करें। वे खंड (घ) के अनुसार प्रभावित पक्षों को अपने प्रशासनिक अथवा अर्द्ध-न्यायिक निर्णयों के संबंध में कारण बताने के लिए भी बाध्य हैं।
अधिनियम की धारा 4 में यह अपेक्षित है कि स्वतः प्रकाशनीय सूचनाओं का व्यापक प्रसार, इस रूप और इस ढंग से किया जाए कि वह जनता तक पहुंच सके। सूचना का प्रसार नोटिस बोर्डों, समाचार पत्रों, सार्वजनिक उद्घोषणाओं, मीडिया प्रसारणों, इंटरनेट अथवा किन्ही अन्य साधनों/माध्यमों द्वारा किया जा सकता है। सूचना का प्रसार करते समय प्रत्येक लोक प्राधिकारी को संबंधित स्थानीय क्षेत्र में लागत प्रभाव, स्थानीय भाषा और संचार की सर्वाधिक प्रभावी पद्धति को ध्यान में रखना चाहिए।
लोक सूचना अधिकारी के पास सूचना, जहां तक संभव हो, इलैक्ट्रानिक प्रारूप में उपलब्ध होनी चाहिए जो जनता को नि:शुल्क अथवा यथा निर्धारित शुल्क पर मुहैया करवाई जा सके। पैरा 3 में उल्लिखित प्रकाशित दस्तावेज़ की एक प्रति और उपर्युक्त पैरा 4 में उल्लिखित प्रकाशनों की प्रतियां लोक प्राधिकारी के एक अधिकारी के पास रखी जानी चाहिए और इन दस्तावेजों का निरीक्षण करने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति द्वारा निरीक्षण के लिए उपलब्ध होनी चाहिए।
सम्पूर्ण जानकारी के लिए आप नीचे दिए गए लिंक से उक्त नियम की प्रति प्राप्त कर सकते हैं।